Kripa shankar"mahir mirzapuri"
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बरसात का मौसम हो रिमझिम फुहार हो
संग ऐसे में कोई हसीन यार हो।।
सर से पाँव तक हो साँचे ढला बदन
औ उसकी निगाहों में थोड़ा खुमार हो।।
हो कोई ऐसी जगह इश्क के लिए
मंद-मंद तर जहाँ बहती बयार हो।।
झूमते हुए दरख़्त हों हरे-भरे
और फिज़ा में बहार ही बहार हो।।
चहकते हों बुलबुल चमन में पपीहा
पी कहाँ, पी कहाँ करता पुकार हो।।
गुड़हल-गुलाब-गेंदा गुलशन में हों खिले
और तितलियों का झुण्ड बेशुमार हो।।
लुफ़्त कहाँ ज़िन्दगी का सबको है नसीब
क्यों न मालो-ज़र भरा घर में अपार हो।।
आता है ‘माहिर’ मज़ा ग़ज़ल सुनाने का
बेहतरीन महफ़िल जब शानदार हो।।
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